कैथल, 25 अगस्त (अजय धानियां) सहकारी चीनी मिल के प्रबंध निदेशक ब्रह्म प्रकाश ने कहा कि मिल के आरक्षित क्षेत्र में गन्ना विकास व जल सरंक्षण पर लगातार गोष्ठीयों का आयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में गांव टयोंठा, सेरधा में गोष्ठीयों का आयोजन संपन्न किया गया। उन्होंने कहा कि धरती पर जल की उपलब्धता सीमित है। जल संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। कृषि में सिचांई हेतु टपका सिचांई विधि को अपनाकर हम जल को संरक्षित कर सकते हैं। हमें जल की एक-एक बूंद को बचाना है। उन्होंने कहा कि टपका सिचांइ वह विधि है जिसमें जल को मंद गति से बूंद-बूंद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाईप से प्रदान किया जाता है। इस सिचांई विधि का अविष्कार सर्वप्रथम इजराइल में हुआ था। जिस का प्रयोग दुनिया के अनेक देशों में हो रहा है। इस विधि में जल उपयोग अल्पव्ययी तरीके से होता है। जिससे सतह वाष्पण एवं भूमि रिसाव से जल की हानि कम से कम होती है। सिचांई की यह विधि शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों के लिए अत्यंत ही उपयुक्त होती है। इस विधि से लवणीय भूमि पर फल बगीचों को सफतापूर्वक उगाने को संभंव कर दिखाया है। इस सिचांई विधि में उर्वरकों को घोल के रूप में भी प्रदान किया जाता है। टपका सिचांई उन क्षेत्रों के लिए अत्यंत ही उपयुक्त है। जहां जल की कमी होती है तथा जमीन असमतल होती है। गन्ना प्रबंधक डॉ. रामपाल ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए किसानों को जानकारी दी की सितंबर-अक्तूबर में अन्तवर्ती फसलों के साथ किसान गन्ना बिजाई करके 1.5 से दोगुना मुनाफा आसानी से कमा सकते है। शरद्कालीन बिजाई के दौरान गन्ना फसल में लाइन से लाइन की दूरी 4-4.6 फीट रखी जाए तो फसल में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप ना के बराबर होता है तथा गन्ना मोटा बनता है। इसलिए सभी किसान शरद् कालीन बिजाई 4-4.6 फीट पर ही करें। इस अवसर पर देशराज, रामपाल तंवर, सतपाल सिंह, राजबीर व काफी संख्या में किसान बलबीर सिंह राणा, शमशेर सिंह, बलकार सिंह, रामकुमार, महावीर सेरधा, रामेश्वर ढुल आदि मौजूद रहे।
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