कैथल, 4 सितम्बर (रमन), कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डॉ. कर्मचंद ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतू विभाग के अधिकारियों के साथ जिला कार्य योजना पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया और खेतों में पराली न जले इसके लिए किसानों को जागरूक करने हेतू विभिन्न जिला, खंड और गांव स्तर पर कार्यक्रम करने के बारे में भी हरियाणा सरकार के निर्देशानुसार 36 रैड व 107 यैलो जोन गांव के सभी कस्टम हायरिंग सैन्टर व व्यक्तिगत किसानों को मुख्य तौर पर सम्पर्क करने बारे चर्चा की गई। सरकार द्वारा 1 हजार रुपये प्रति एकड़ इन-सीटू व एक्स-सीटू पराली प्रबंधन हेतू प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। पंजीकरण हेतू पोर्टल खुल चुका है, इच्छुक किसान अपना पंजीकरण पोर्टल पर करवाकर 1 हजार रुपये प्रति एकड़ का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह लाभ किसानों के खातों में सीधे ट्रांसफर किए जाएंगें। पिछले साल 16 करोड़ रुपये किसानों के खातों में सीधे ट्रांसफर किए गए थे। कृषि उप निदेशक ने कहा कि पराली जलाने के मामले में अति संवेदनशील गांवों पर विशेष निगरानी रखी जाए और हर गांव पर एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा कृषि विभाग, ग्राम सचिव तथा पटवारियों की ग्राम स्तर पर टीमें बनाई जाएंगी, जो कि किसानों को फसल अवशेष न जलाने तथा पराली प्रबंधन के फायदों के बारे में जागरूक करेंगें। उन्होंने कहा कि किसी भी गांवों में पराली जलाने के घटना न हो, इसके लिए कृषि अधिकारी गांव स्तर पर गठित नोडल अधिकारी से तालमेल स्थापित कर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करेंगें। इसके अलावा नम्बरदारों, ग्राम सचिवों से मिलकर गांवों में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीणों को पराली न जलाने के बारे में प्रेरित करें।
किसान पराली का उपयोग पशु चारे के साथ-साथ अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए भी कर सकता है। जहां पराली का उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जाता है, वहीं पराली का उपयोग अन्य सामग्री बनाने में भी किया जाता है। कृषि अधिकारी गांवों में जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर किसानों एवं महिलाओं को पराली जलाने से होने वाले नुकसान व उसके प्रबंधन की जानकारी दें। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डॉ. कर्मचंद ने कहा कि 1 लाख 54 हजार हैक्टेयर में धान की रोपाई की हुई है, जिसमें से 40 हजार हैक्टेयर में बासमती व 1 लाख 14 हजार हैक्टेयर में गैर बासमती धान लगाई हुई है, जिससे लगभग 9 लाख 60 हजार टन पराली पैदा होती है। किसान पराली प्रबंधन कस्टम हायरिंग सैन्टर व व्यक्तिगत किसानों के पास मौजूद फसल अवशेष कृषि यंत्रों से तय दरों पर किराये पर मशीनें लेकर प्रबंधन कर सकते हैं।
किसान खेतों में फसल के अवशेषों को न जलाएं बल्कि एसएमएस लगी कंबाईन का प्रयोग करें या बेलर मशीन से गांठें बनाकर विभिन्न संयत्रों में बेचें। हो सके तो फसल अवशेषों को मिट्टी में ही मिलाएं ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़े। पराली जलाने से न केवल भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है बल्कि उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाले मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं और धीरे-धीरे भूमि बंजर बन जाती है। इसके अलावा पराली जलाने से श्वास संबंधी अनेक बिमारियां होने का अंदेशा बना रहता है। सरपंच, जिला प्रशासन द्वारा पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश के लिए कृषि विभाग द्वारा गठित टीमों का सहयोग करेंगें और ग्रामीणों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि कोई भी किसान अगर पराली जलाता पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्यवाई व जुर्माना किया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ तुरन्त कार्यवाई करें।
Leave a Reply