कैथल, 14 मार्च, पेट को ठीक रखना है तो खेत को भी ठीक रखना होगा। यह बात कई प्रगतिशील किसानों के जहन में बैठ चुकी है और उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़कर दलहन, तिलहन, सद्ब्रिजयों, खुंभी, फूलों औ फलों की खेती की ओर रुख कर लिया है। वैसे तो जिला में ऐसे कई किसान है, जिन्होंने प्रति एकड़ उत्पादन क्षमता बढ़ाकर प्रति एकड़ आय में भी वृद्धि की है। इनमें छोटी जोत के किसान भी शामिल हैं। ऐसे किसानों को जो अन्य के लिए नई सोच और सीख बनकर उभरे हैं, उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सम्मान भी किया जा चुका है। ऐसे जमीन से जुड़े किसानों में शामिल हैं गांव रसीना के प्रगतिशील किसान महेंद्र सिंह।
प्रगतिशील किसान महेंद्र सिंह रसीना को अभी हाल ही में फसलों के विविधिकरण के दृष्टिïगत तृतीय सम्मान से नवाजा गया है। इसी महीनें 10 से 12 मार्च तक एचएयू में लगे प्रगतिशील किसान मेले में महेंद्र को यह सक्वमान मिला। इस विषय को लेकर जब उनसे बात की गई तो उन्होंने बताया कि वे वर्ष 1990 से फसलों के विविधिकरण की खेती कर रहे हैं। सबसे पहले सद्ब्रिजयों में मौसम अनुसार घीया, तोरी, टींडे, भिंडी, करेला इत्यादि की खेती किया करते थे। उसके बाद बड़े स्तर पर विभिन्न किस्मों का गन्ना उगाया और प्रति एकड़ अच्छा उत्पादन लिया। रसायनिक और जैविक खेती के बाद ेअब प्राकृतिक खेती को अपनाया है। पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें वर्ष 2011 में बाबू जगजीवन राम अभिवन किसान पुरस्कार मिल चुका है। दिल्ली में भारतीय किसान अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित किसान कार्यक्रम में उन्हें इस पुरस्कार से सक्मानित किया गया।
उन्होंने यह भी बताया कि गन्नौर में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें कृषि रत्न पुरस्कार मिला। वर्ष 2019 में गन्नौर में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 2021 में भी राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में किसान रत्न पुरस्कार मिला। आत्म निर्भर किसान कार्यक्रम के तहत देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तौमर ने यह पुरस्कार देकर सक्वमानित किया। इतना ही नहीं जिला और ब्लॉक स्तर पर भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। भविष्य में खेती करने के तौर तरीकों संबंधित विषयों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा मुख्य उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना है और इस विषय पर निरंतर काम कर रहा हूं। पशुपालन का व्यवसाय भी शुरू से करता हूं। अच्छी नस्ल की जिनमें मुर्राह नस्ल की भैंसें पालना उनकी रूचि रही है। अब पशुपालन के कार्य को और आगे बढ़ाया जा रहा है।
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